‘जुगनुमा – द फैबल’ रिव्यू: एक अलग सोच वाली फिल्म जो दिल और दिमाग दोनों को छूती है

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मनोज बाजपेयी, प्रियंका बोस, हीरल सिंधु और दीपक डोबरियाल अभिनीत ‘जुगनुमा – द फैबल’ अब सिनेमाघरों में है। राम रेड्डी की यह फिल्म सच्चे कला-फिल्म प्रेमियों के लिए है। पूरी समीक्षा पढ़ने के लिए आगे स्क्रॉल करें।

फिल्म निर्माता राम रेड्डी की ‘जुगनुमा – द फैबल’ एक अनोखी फिल्म है, जो शुरुआत से अंत तक आपको सोचने पर मजबूर करती है। यह एक ऐसी फिल्म है जो धीमी गति से चलती है, लेकिन हर सीन के साथ कुछ जोड़ती जाती है और आखिर के पांच मिनट में जाकर सारी बातें आपस में जुड़ती हैं। ‘जुगनुमा’ उन लोगों के लिए नहीं है जो सिर्फ मनोरंजन के लिए फिल्में देखते हैं। यह फिल्म उनके लिए है जो सिनेमा को एक कला की तरह देखते हैं और निर्देशक के नजरिए को समझना चाहते हैं। फिल्म खत्म होने के बाद भी इसका असर बना रहता है, और यह आपको अपनी समझ और सोच के अनुसार अलग-अलग बातें सोचने पर मजबूर करती है।

कहानी हिमालय में शुरू होती है और वहीं खत्म होती है

फिल्म की शुरुआत 1989 में हिमालय की वादियों में होती है। पहला सीन ही आपको उस दुनिया में ले जाता है जहां देव नाम का शांत और सोचने वाला इंसान खुद के बनाए पंखों के साथ एक पहाड़ी से उड़ने की कोशिश करता है। मनोज बाजपेयी ने देव का किरदार निभाया है, जो अपने दादा के छोड़े हुए बागों का मालिक है। ये बाग उनके दादा को अंग्रेजों की सेवा के बदले में मिले थे। देव एक सुंदर घर में अपनी पत्नी, बेटा और बेटी के साथ रहते हैं। सब कुछ ठीक चल रहा होता है, लेकिन अचानक उनके बगीचे के कुछ पेड़ बिना वजह जलने लगते हैं। 

धीरे-धीरे ये आग पूरे बाग को निगल जाती है। इससे देव का मानसिक संतुलन बिगड़ने लगता है और वह हर किसी पर शक करने लगता है।जब वह सबको अपने से दूर कर देता है, तब जाकर वह खुद को और अपनी जमीन से जुड़े रिश्ते को समझता है। इसके बाद वह अपने गांव और अपने परिवार के लिए सही फैसला लेता है और उस दुनिया की तरफ लौटता है जो उसकी असल दुनिया थी।

तकनीकी पक्ष: लेखन, निर्देशन और कैमरा वर्क

‘जुगनुमा’ एक अलग किस्म की फिल्म है, जो 16mm फिल्म के अंदाज में बनाई गई है। यह फिल्म एक तरह से देव के जीवन की डॉक्यूमेंट्री जैसी लगती है। निर्देशक राम रेड्डी हर किरदार की आत्मा और भावनाओं को बारीकी से दिखाते हैं। फिल्म में एक सीन है जहां देव खुद को जुगनुओं के बीच पाता है – वो सीन इतना गहरा और खास है कि आप उसे आसानी से नहीं भूल सकते। फिल्म में असली जगहों और स्थानीय कलाकारों को शामिल किया गया है, जो इसे और भी असली और सच्चा बनाता है।

कैमरा वर्क की बात करें तो सुनील रामकृष्ण बोरकर ने हर सीन को एक खूबसूरत तस्वीर जैसा शूट किया है। हर फ्रेम में एक खास भाव है, जो फिल्म को समय से परे बना देता है। राम रेड्डी की यह फिल्म बहुत ध्यान से बनाई गई है। कोई भी सीन फालतू नहीं लगता। फिल्म थोड़ी धीमी जरूर है और शुरुआत में आपको ध्यान लगाना पड़ता है, लेकिन जब आप इसमें डूब जाते हैं, तो हर चीज जुड़ती नजर आती है। निर्देशक दर्शकों पर भरोसा करते हैं और उन्हें सब कुछ सीधे नहीं बताते – ताकि अंत में दर्शक खुद महसूस करें कि क्या हुआ।

अभिनय: मनोज बाजपेयी का शानदार प्रदर्शन

मनोज बाजपेयी ने एक बार फिर साबित किया है कि वह एक बेहतरीन अभिनेता हैं। उन्होंने देव के अंदर चल रही उथल-पुथल, उसकी पीड़ा और उसका संतुलन बहुत अच्छे से दिखाया है। फिल्म देखते हुए आप मनोज को भूल जाते हैं और सिर्फ देव को महसूस करते हैं।

प्रियंका बोस, जो देव की पत्नी बनी हैं, ने भी बहुत असरदार काम किया है। उनका गुस्सा, उनका डर – सब कुछ बहुत असली लगता है।

हीरल सिद्धू (वान्या के किरदार में) का अभिनय भी शानदार है। वो इस फिल्म की नई खोज हैं और भविष्य में उनसे काफी उम्मीदें की जा सकती हैं।

दीपक डोबरियाल ने मोहन का रोल निभाया है, जो एक एस्टेट मैनेजर है। वह पेड़ों को अपने बच्चों की तरह मानता है। जब उन्हें मरते हुए देखता है तो उसका दुख साफ झलकता है। जब देव उसे जाने के लिए कहता है, तब उसके चेहरे के हाव-भाव में जो बदलाव आता है, वह उनके शानदार अभिनय का उदाहरण है।

तिलोत्तमा शोम के डायलॉग्स और उनका अभिनय भी फिल्म की आत्मा को जोड़ता है। स्थानीय कलाकारों की मौजूदगी फिल्म को और भी यथार्थ बनाती है।

देखें या छोड़ें?

‘जुगनुमा’ सिर्फ एक फिल्म नहीं है, बल्कि एक अनुभव है। यह उन लोगों के लिए है जो धैर्य रखते हैं और सिनेमा को महसूस करना जानते हैं। यह फिल्म बहुत सोच-समझकर बनाई गई है और इसलिए अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवलों में इसकी सराहना भी की गई है। राम रेड्डी की यह फिल्म काल्पनिक और यथार्थ को मिलाकर एक ऐसा भावनात्मक सफर बनाती है जो आपके दिल को छू जाता है। हर सीन एक कविता की तरह है धीमा, लेकिन असरदार। यह फिल्म खत्म होने के बाद भी आपकी सोच में बनी रहती है। एक खूबसूरत और सोचने पर मजबूर करने वाली फिल्म को 3.5 स्टार दे रहे हैं।

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