Ganesh Chaturthi Katha : जो श्रद्धालु भाद्रपद शुक्ल पक्ष की गणेश चतुर्थी का व्रत रखते हैं उन्हें गणेश जी के जन्म की कथा जरूर पढ़नी चाहिए। कहते हैं इससे पूजा का संपूर्ण फल प्राप्त हो जाता है।

सनातन धर्म में गणेश चतुर्थी के व्रत का विशेष महत्व माना जाता है। कहते हैं जो कोई इस दिन सच्चे मन से व्रत रखता है उसके जीवन की सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं। इस दिन श्रद्धालु घर में बप्पा की प्रतिमा स्थापित करते हैं और उनकी विधिवत पूजा करते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि गणेश चतुर्थी क्यों मनाई जाती है और इस दिन कौन सी कथा पढ़ी जाती है। चलिए आपको बताते हैं गणेश चतुर्थी की पावन कथा।
Ganesh Chaturthi Katha
गणेश चतुर्थी की पावन कथा अनुसार, प्राचीन समय की बात है। एक दिन देवी पार्वती ने स्नान करते समय अपने शरीर की मैल से एक बालक की मूर्ति बनाई और उसमें प्राण डाल दिए। पार्वती जी ने उसे आदेश दिया कि जब तक वह स्नान कर रही हैं, तब तक वो किसी को भी अंदर न आने दें। उसी समय अचानक से भगवान शिव वहां पहुंचे। लेकिन बालक ने उन्हें अंदर जाने से रोक दिया। यह देख शिव जी को क्रोध आ गया और उन्होंने उस बालक को चेतावनी दी लेकिन इसके बाद भी बालक ने भगवान को अंदर नहीं जाने दिया। तब भगवान शिव ने अपने त्रिशूल से उसका सिर काट दिया। जब माता पार्वती ने ये दृश्य देखा, तो उन्हें क्रोध आ गया जिसके बाद माता ने संपूर्ण ब्रह्मांड को नष्ट करने की धमकी दे दी।
माता पार्वती के क्रोध को शांत करने के लिए भगवान शिव ने देवताओं से कहा कि जो भी जीव उत्तर दिशा की ओर सोया हो उसका सिर लेकर आओ। देवताओं को एक हाथी का बच्चा मिला तो वे उसका सिर लेकर आए और भगवान शिव ने उसे बालक के धड़ से जोड़ दिया जिससे बालक जीवित हो उठा। देवी पार्वती की प्रसन्नता के लिए भगवान शिव ने उस बालक का नाम गणेश रखा और उन्हें आशीर्वाद दिया कि अब से सबसे पहले पूजा गणेश जी की ही होगी। कहते हैं तभी से भगवान गणेश को प्रथम पूज्य देवता का स्थान मिला। कहते हैं जिस दिन भगवान गणेश का जन्म हुआ था उस दिन भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी थी इसलिए तभी से इस दिन गणेश चतुर्थी का त्योहार मनाया जाने लगा।
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।