उपराष्ट्रपति बनने से पहले राष्ट्रपति की कुर्सी पर बैठे, भारत के चीफ जस्टिस भी रहे, जानें किसने किया था ये कमाल

Spread the love

भारत के इतिहास में एक शख्स ऐसे भी रहे हैं जिन्होंने चीफ जस्टिस, कार्यवाहक राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के रूप में देश की सेवा की। उनका नाम मोहम्मद हिदायतुल्लाह था और वह एक महान न्यायविद, लेखक और शिक्षाविद के रूप में आज भी याद किए जाते हैं।

नई दिल्ली: भारतीय इतिहास में कुछ शख्सियतें ऐसी हैं, जिनके कारनामे समय की सीमाओं को पार कर जाते हैं। ऐसी ही एक शख्सियत थे मोहम्मद हिदायतुल्लाह, जिन्होंने न सिर्फ भारत के चीफ जस्टिस के रूप में अपनी अमिट छाप छोड़ी, बल्कि उपराष्ट्रपति और कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में भी देश की सेवा की। वह पहले और अब तक के एकमात्र शख्स हैं, जिन्होंने भारत के ये तीनों महत्वपूर्ण पद संभाले। उनकी इस अनोखी उपलब्धि को दूसरा कोई भी शख्स हासिल नहीं कर पाया है।

शुरुआती जिंदगी और शिक्षा का सफर

17 दिसंबर 1905 को जन्मे मोहम्मद हिदायतुल्लाह का ताल्लुक एक मशहूर परिवार से था। उनके पिता खान बहादुर हाफिज मोहम्मद विलायतुल्लाह उर्दू के मशहूर शायर थे, जिनसे हिदायतुल्लाह को साहित्य और भाषा के प्रति प्रेम विरासत में मिला। उनके दादा मुंशी कुदरतुल्लाह बनारस में वकील थे। हिदायतुल्लाह ने अपनी शुरुआती पढ़ाई रायपुर के गवर्नमेंट हाई स्कूल से पूरी की और 1922 में नागपुर के मॉरिस कॉलेज में दाखिला लिया। यहां उन्होंने 1926 में मलक गोल्ड मेडल जीता। इसके बाद, वे ब्रिटिश कानून की पढ़ाई के लिए कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के ट्रिनिटी कॉलेज गए। वहां 1930 में उन्होंने बैरिस्टर-एट-लॉ की डिग्री हासिल की और लिंकन इन से गोल्ड मेडल के साथ सम्मानित हुए।

1930 में शुरू की थी वकालत

भारत लौटने के बाद हिदायतुल्लाह ने 1930 में नागपुर हाई कोर्ट में वकालत शुरू की। वे न सिर्फ कानून के क्षेत्र में माहिर थे, बल्कि कई विषयों के अच्छे शिक्षक भी थे। 1943 में वे मध्य प्रदेश के सबसे युवा एडवोकेट जनरल बने। 1946 में वे नागपुर हाई कोर्ट के जज बने और 1954 में सबसे कम उम्र में हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस नियुक्त हुए। 1958 में वे सुप्रीम कोर्ट के जज बने और 1968 में भारत के पहले मुस्लिम चीफ जस्टिस बने। अपने करियर में उन्होंने 461 फैसले लिखे और 1220 बेंचों में हिस्सा लिया। उनके ‘गोलकनाथ बनाम पंजाब’ और ‘रंजीत डी. उदेशी’ जैसे मामलों में दिए गए फैसले आज भी ऐतिहासिक माने जाते हैं।

राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति की भूमिका

1969 में जब राष्ट्रपति जाकिर हुसैन का अचानक निधन हुआ और उपराष्ट्रपति वी.वी. गिरी ने इस्तीफा दे दिया, तब हिदायतुल्लाह ने 20 जुलाई से 24 अगस्त 1969 तक कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में सेवा दी। इस दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन की भारत यात्रा ने उनके कार्यकाल को और ऐतिहासिक बना दिया। इसके बाद, 1979 से 1984 तक वह देश के उपराष्ट्रपति रहे। 1982 में जब राष्ट्रपति जैल सिंह विदेश दौरे पर थे, हिदायतुल्लाह ने दोबारा 6 अक्टूबर से 31 अक्टूबर तक कार्यवाहक राष्ट्रपति की जिम्मेदारी संभाली। इस तरह वह भारत के इतिहास में एकमात्र ऐसे शख्स बने, जिन्होंने चीफ जस्टिस, उपराष्ट्रपति और राष्ट्रपति, तीनों पदों पर अपनी सेवाएं दीं।

शिक्षक और कुलपति की भी भूमिका निभाई

हिदायतुल्लाह सिर्फ कानून के क्षेत्र तक सीमित नहीं रहे। वे कई विश्वविद्यालयों में शिक्षक और कुलपति रहे। उन्होंने नागपुर यूनिवर्सिटी, सागर यूनिवर्सिटी, दिल्ली यूनिवर्सिटी, और जामिया मिलिया इस्लामिया जैसे संस्थानों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे बॉय स्काउट्स एसोसिएशन के चीफ स्काउट रहे और 1982 से 1992 तक ऑल इंडिया बॉय स्काउट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष भी रहे। इसके अलावा, वे इंडियन लॉ इंस्टीट्यूट और इंटरनेशनल लॉ एसोसिएशन के अध्यक्ष रहे। हिदायतुल्लाह को हिंदी, उर्दू, अंग्रेजी, फारसी और फ्रेंच में महारत हासिल थी। इसके साथ ही उन्हें संस्कृत और बंगाली जैसी भाषाओं का भी ज्ञान था।

हिदायतुल्लाह को मिले थे कई सम्मान

हिदायतुल्लाह की किताबें जैसे डेमोक्रेसी इन इंडिया एंड द ज्यूडिशियल प्रोसेस, द साउथ-वेस्ट अफ्रीका केस, और उनकी आत्मकथा माय ओन बोसवेल ने उन्हें एक विद्वान के रूप में प्रसिद्धि दिलाई। हिदायतुल्लाह को उनके योगदान के लिए कई सम्मान मिले। 1946 में ब्रिटिश सरकार ने उन्हें ऑर्डर ऑफ द ब्रिटिश एम्पायर से नवाजा। इसके अलावा, उन्हें युगोस्लाविया का ऑर्डर ऑफ युगोस्लाव फ्लैग (1970), मनीला का की टू द सिटी (1971), और शिरोमणि अवॉर्ड (1986) जैसे सम्मान मिले। भारत और विदेशों की 12 यूनिवर्सिटियों ने उन्हें डॉक्टर ऑफ लॉ और डॉक्टर ऑफ लिटरेचर की मानद उपाधियां दीं।

पुष्पा शाह से हुई थी हिदायतुल्लाह की शादी

1948 में हिदायतुल्लाह ने पुष्पा शाह से शादी की, जो एक जैन परिवार से थीं। पुष्पा शाह के पिता ए.एन. शाह इनकम टैक्स अपीलेट ट्रिब्यूनल के चेयरमैन थे। उनके बेटे अरशद हिदायतुल्लाह आज सुप्रीम कोर्ट में सीनियर काउंसल हैं। मोहम्मद हिदायतुल्लाह की याद में छत्तीसगढ़ के नया रायपुर में हिदायतुल्लाह नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी की स्थापना की गई। यह विश्वविद्यालय हर साल जस्टिस हिदायतुल्लाह मेमोरियल नेशनल मूट कोर्ट कॉम्पिटिशन आयोजित करता है। मोहम्मद हिदायतुल्लाह की जिंदगी एक मिसाल है कि मेहनत, लगन और इंसाफ के प्रति समर्पण से कोई भी मुकाम हासिल किया जा सकता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *