युद्ध, दुर्घटना या प्राकृतिक आपदाओं में हुई है किसी परिजन की मृत्यु? जानें कब करना है ऐसे पितरों का श्राद्ध

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अगर आपके परिजनों में से किसी की मृत्यु युद्ध, दर्घटना या प्राकृतिक आपदाओं में हुई हो तो उनका श्राद्ध कब करना चाहिए, इसके बारे में आज हम आपको जानकारी देंगे।

पितृपक्ष में हम अपने पूर्वजों को स्मरण करते हैं और उनके निमित्त श्राद्ध, तर्पण आदि करते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पितृपक्ष के दौरान हमारे पूर्वज धरती पर आते हैं। ऐसे में हम अगर उनकी पूजा करते हैं तो उनका आशीर्वाद हम पर बरसता है। इस दौरान उन लोगों का श्राद्ध भी अवश्य करना चाहिए जिनकी मृत्यु युद्ध, दुर्घटना या फिर किसी प्राकृतिक आपदा में हुई हो। ऐसे पितरों का श्राद्ध कब करना चाहिए इसके बारे में आज हम आपको अपने इस लेख में जानकारी देंगे।

युद्ध, दुर्घटना और प्राकृतिक आपदाओं में हुई है मृत्यु तो इस दिन करें श्राद्ध

पितृपक्ष की कुछ तिथियों को बेहद खास माना जाता है। इनमें से चतुर्दशी का श्राद्ध भी एक है। इस दिन उन लोगों का श्राद्ध किया जाता है जिनकी मृत्यु दुर्घटनाओं में हुई हो, युद्ध के दौरान हुई हो या फिर किसी प्राकृतिक आपदा में हुई हो। आपका कोई परिजन किसी भी आप्राकृतिक तरीके से मृत हुआ हो तो इस दिन आप उनका श्राद्ध, तर्पण आदि कर सकते हैं। इस दिन किए गए श्राद्ध से कई लाभ भी आपको मिलते हैं।

चतुर्दशी श्राद्ध करने के लाभ 

अगर आप चतुर्दशी तिथि का श्राद्ध करते हैं तो आपके उन सभी पितरों को शांति प्राप्त होती है जिनकी मृत्यु अप्राकृतिक तरीके से हुई हो। इसके साथ ही इस दिन किया गया श्राद्ध अकाल मृत्यु के भय से आपको मुक्ति दिलाता है। इस दिन श्राद्ध करने से आपके पितृ आपकी सुरक्षा करते हैं। इस दिन किए गए श्राद्ध से आपको मानसिक शांति और पारिवारिक सुख भी प्राप्त होता है। अगर आपके घर में भी किसी की अकाल मृत्यु हुई है तो चतुर्दशी तिथि का श्राद्ध आपको अवश्य करना चाहिए।

मृत्यु तिथि ज्ञात न हो तो इस दिन करें श्राद्ध 

पितृपक्ष में अमावस्या तिथि को भी बेहद खास माना जाता है। इस दिन उन पितरों का श्राद्ध किया जाता है जिनकी मृत्यु की तिथि आपको ज्ञात नहीं है। ऐसा माना जाता है कि, अमावस्या तिथि के दिन श्राद्ध करने से भूले-बिसरे सभी पितृ प्रसन्न होते हैं। अमावस्या तिथि के दिन किए गए श्राद्ध से मुक्ति का द्वार आपके लिए भी खुलता है। वहीं पितृदोष से भी मुक्ति इस दिन किए गए श्राद्ध से मिलती है।

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।

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